A poem by Sahir Ludhianvi
आप, आप क्या जाने मुझको समझते है क्या मै तो कुछ भी नही | इस कदर प्यार इतनी बड़ी भीड़ का मै रखूँगा कहाँ इस कदर प्यार रखने के काबिल नही मेरा दिल, मेरी जान मुझको इतनी मुहब्बत ना दो दोस्तों, मुझको इतनी मुहब्बत ना दो दोस्तों सोच लो दोस्तों इस कदर प्यार कैसे संभालूँगा मैं मै तो कुछ भी नही | प्यार, प्यार एक शख्श का भी अगर मिल सके तो बड़ी चीज़ है जिन्दगी के लिए आदमी को मगर ये भी मिलता नही ये भी मिलता नही, मुझको इतनी मुहब्बत मिली आपसे ये मेरा हक नही मेरी तकदीर है मैं ज़माने की नज़रो में कुछ भी ना था मेरी आँखों में अब तक वो तस्वीर है उस मुहब्बत के बदले मै क्या नज़र दूँ मै तो कुछ भी नही | इज्ज़ते, शोहरते, चाहतें, उल्फतें , कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नही आज मै हूँ जहाँ, कल कोई और था ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था आज इतनी मुहब्बत ना दो दोस्तों कि मेरे कल के खातिर कुछ भी ना रहे आज का प्यार थोडा बचा कर रखो थोडा बचा कर रखो मेरे कल के लिए कल कल जो गुमनाम है कल जो सुनसान है कल जो अनजान है कल जो वीरान है मै तो कुछ भी नही | (This is original poem by Sahir Ludhi...